Lal Bahadur Shastri Jayanti | Lal Bahadur Shastri Birthday | Lal Bahadur Shastri Quotes
लाल बहादुर शास्त्री जी आजाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे. 02 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि होती है. इनका निधन 11 जनवरी 1966 को हुआ था. लाल बहादुर शास्त्री जी ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने देश को जय जवान, जय किसान का नारा दिया. इसे राष्ट्रीय नारा कहा जाता है, जो देश के जवान और किसान के श्रम को दर्शाता है.
02 अक्टूबर 2023 को लाल बहादुर शास्त्री जयंती है. कई महान नायकों की तरह लाल बहादुर शास्त्री ने भी देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ते हुए भारत के दूसरे प्रधान मंत्री के रूप में भी सफल हुए। लाल बहादुर शास्त्री जी की जन्मतिथि 02 अक्टूबर है।
लाल बहादुर शास्त्री जी सादा जीवन, सरल स्वभाव, ईमानदारी और अपनी दृढ़ता के लिए जाने जाते है. उन्होंने देश को ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया. लेकिन उनके जीवन का अंत बहुत रहस्यमी रहा.
Lal Bahadur Shastri Biography in Hindi
शास्त्री जी भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री थे. कार्यकाल के दौरान नेहरु जी की मृत्यु हो जाने के कारण 9 जून 1964 में शास्त्री जी को इस पद पर मनोनित किया गया . इनका स्थान तो द्वित था, परन्तु इनका शासन ‘अद्वितीय’ रहा. इस सादगीपूर्ण एवम शान्त व्यक्ति को 1966 में देश के सबसे बड़े सम्मान ‘भारत-रत्न’ से नवाज़ा गया. शास्त्री जी एक महान स्वतंत्रता संग्रामी थे, वे महात्मा गाँधी व जवाहर लाल नेहरु के पद चिन्हों पर चलते थे. इन्होने 1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के समय देश को संभाले रखा, और सेना को सही निर्देशन दिया. और जंग को जीत लिया. सभी बच्चे नेहरू जी को चाचा बोलते थे.
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ताशकंद समझौता क्या था इससे भारत को क्या फायदा या नुकसान हुआ?
जब लाल बहादुर शास्त्री पाकिस्तान से बातचीत ताशकंद जा रहे थे तो उन्होंने भारत को भरोसा दिलाया था कि उनके रहते हुए भारत कश्मीर में हाजी पीर चोटी कभी नहीं लौटाएगा। दुर्भाग्यवश जब भारत ने हाजी पीर चोटी पाकिस्तान को लौटाया तो शास्त्री जी जीवित नहीं थे।
अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण भारत और पाकिस्तान दोनों ने 1965 के युद्ध में 23 सितम्बर को युद्धविराम स्वीकार कर लिया था। हालाँकि भारत को पूर्ण विजय हांसिल नहीं हुआ था लेकिन पाकिस्तान अपने उद्देश्य में असफल रहा था। युद्धविराम के दिन भारत का पलड़ा बहुत भारी था और भारत ने पाकिस्तान उसके बाद सोवियत प्रधानमंत्री अलेक्सी कोसियगिन ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्था का प्रस्ताव किया। भारत ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया।
अमेरिका और ब्रिटेन को लोग कि भारत और पाकिस्तान दोनों ब्रिटेन के अधिक करीब है और सोवियत संघ ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था। इसलिए उनके कहने पर पाकिस्तान ने भी इस प्रस्ताव को मान लिया। सोवियत संघ के उज़्बेकिस्तान गणराज्य की राजधानी ताशकंद में भारत और पाकिस्तान की वार्ता शुरू हुयी। पाकिस्तान ने जम्मू के छम्ब इलाके में भारतीय जमीन पर कब्ज़ा किया था और भारत ने कश्मीर से हाजी पीर चोटी पर कब्ज़ा किया था (इसके अलावा पंजाब और सिंध में भी भारत ने कुछ पाकिस्तानी जमीन पर कब्ज़ा किया था)।
पाकिस्तान हाजी पीर चोटी के रास्ते ही भारत में घुसपैठि भेजता था इसलिए इस चोटी का बहुत सामरिक महत्व था। शास्त्री जी अंत समय तक इस चोटी को वापस करने को राजी नहीं थे। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद ने भी कहा था और अब सोवियत संघ भी कह रहा था की दोनों देशों को युद्ध में जीती गयी जमीन एक दूसरे को वापस करना होगा।
अमेरिका और ब्रिटेन पाकिस्तान की तरफ झुक रहे थे और सोवियत संघ भी भारत का अच्छा दोस्त नहीं था ऊपर से चीन से भारत ने 3 साल पहले ही लड़ाई लड़ी थी। अंत में हार कर शास्त्री जी ने हाजी पीर चोटी लौटने का फैसला किया और पाकिस्तान ने भी अपनी जीती हुयी भूमि लौटाने का निर्णय लिया। लेकिन भारत इस बात पर सफल हुआ की भारत और पाकिस्तान के बीच संधि बिना कश्मीर मुद्दे हल किये हो गयी। के अधिक हिस्से पर कब्ज़ा किया था। अगर लड़ाई कुछ दिन और चलती तो शायद भारत की पूर्ण विजय होती।
जब लाल बहादुर शास्त्री ने अपने घर फोन किया तो उनकी धर्मपत्नी ने उनसे बात करने से इंकार कर दिया क्योंकि शास्त्री जी ने हाजी पीर चोटी लौटने का निर्णय लिया था। देश की जनता भी इस निर्णय से खुश नहीं थी और कुछ लोगो का कहना था की हाजी पीर चोटी लौटने के बदले भारत ने पाकिस्तान से दोबारा हमला न करने का वचन नहीं लिया। भारत के कुछ विपक्षी दल शास्त्री जी को दिल्ली हवाई अड्डे पर काला झंडा दिखने की योजना बना रहे थे। पाकिस्तान में भी विदेश मंत्री भुट्टो नहीं खुश थे क्योंकि कश्मीर का कोई समाधान नहीं हुआ था और पाकिस्तान छम्ब इलाके को छोर रहा था।
लेकिन शायद ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था और ताशकंद में समझौते के अगले सुबह तड़के शास्त्री जी का निधन (कुछ लोग इसे हत्या बताते है) हो गया। यह भारत के लिए सबसे बड़ा झटका था। शायद उस समय भारत ने अपने सबसे प्रभावशाली नेता खो दिया। अगर उस दिन शास्त्री जी का निधन नहीं होता तो भारत का इतिहास अलग ही होता।
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लाल बहादुर शास्त्री: जिनकी एक आवाज़ पर लाखों भारतीयों ने छोड़ दिया था एक वक़्त का खाना
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को आज पूरा देश याद कर रहा है। लाल बहादुर शास्त्री का 1966 में तत्कालीन सोवियत संघ के उज्बेकिस्तान के ताशकंद में निधन हो गया था। शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया था। उनके ही नेतृत्व में भारत ने वर्ष 1965 की जंग में पाकिस्तान को शिकस्त दी थी। वे देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिनकी एक आवाज पर देशवासियों ने एक वक्त का खाना छोड़ दिया था, लेकिन उनकी मौत की कहानी अब तक रहस्य बनी हुई है।
तारिक 26 सितंबर, 1965 का है. भारत-पाकिस्तान युद्ध ख़त्म हुए अभी चार दिन ही हुए थे. जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिल्ली के रामलीला मैदान में हज़ारों लोगों के सामने बोलना शुरू किया.
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शास्त्री जी ने ऐलान किया, “सदर अयूब ने कहा था कि वो दिल्ली तक चहलक़दमी करते हुए पहुंच जाएंगे. वो इतने बड़े आदमी हैं. मैंने सोचा कि उन्हें दिल्ली तक चलने की तकलीफ़ क्यों दी जाए. हम ही लाहौर की तरफ़ बढ़ कर उनका इस्तक़बाल करें.”
जय जवान जय किसान का नारा
लाल बहादुर शास्त्री जी ‘जय जवान जय किसान’ नारे के उद्घोषक थे. जब वे प्रधानमंत्री बने तब देश में अनाज का संकट था और मानसून भी कमजोर था. ऐसे में देश में अकाल की नौबत आ गई थी. अगस्त 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में लाल बहादुर शास्त्री जी ने पहली बार जय जवान जय किसान का नारा दिया. इस नारे को भारत का राष्ट्रीय नारा भी कहा जाता है, जोकि किसान और जवान के श्रम को दर्शाता है. साथ ही उन्होंने लोगों से हफ्ते में एक दिन का उपवास भी रखने को कहा और खुद भी ऐसा किया.
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